सारी रात जाग कर बिताई
नींद ने हर क्षण डांट लगायी
इस नादान को फिर भी समझ ना आई |
अब डर ने हर कोने में है सेंध लगायी
काम के बढ़ते भोझ ने मुझे आँख दिखाई
इसी कारण मुझे नींद नहीं आई |
निरंतर धीरे चलते डब्बे ने भी नज़र चुरायी
घडी की सुइय्याँ दिखा गुहार लगायी
मुझे फिर भी नींद ना आई |
आँखों में है अब सुर्खी छाई
ऐनक भी उतारकर मेज़ पर है टिकाई
पर ज्ञात नहीं की नींद आई या नहीं आई ||